राजस्थान के प्रसिद लोकगीत
1. पणिहारी लोक गीत:-
यह पनघट से जुड़े लोक गीतों में सर्वाधिक प्रसिद्ध है। पणिहारी गीत में राजस्थानी स्त्री का पतिव्रता धर्म पर अटल रहना बताया गया है। इसमें पतिव्रत धर्म पर अटल पणिहारिन व पथिक के संवाद को गीत रूप में गाया जाता है। जैसे – कुण रे खुदाया कुआँ, बावड़ी ए पणिहारी जी रे लो।
2. वन्याक (विनायक) लोक गीत:-
गणेशजी (विनायक) मांगलिक कार्यो के देवता है। अत: मांगलिक कार्य एवं विवाह के अवसर पर सर्वप्रथम विनायक जी का गीत गाया जाता है।
3. गोरबंध लोक गीत:-
गोरबंध, ऊंट के गले का आभूषण है। इस गीत से ऊँट के शृंगार का वर्णन मिलता है।
मारवाड़ तथा शेखावटी क्षेत्र में इस आभूषण पर गीत गोरबंध नखरालो गीत गाया जाता है।
4. केसरिया बालम लोक गीत:-
राजस्थान के इस अत्यंत लोकप्रिय गीत में नायिका विरह से युक्त होकर विदेश गए हुए अपने पति की याद करती है तथा देश में आने की अनुनय करती है।
5.हिण्डोल्या लोक गीत:-
राजस्थानी स्त्रियां श्रावण मास में झूला-झूलते हुए यह गीत गाती है।
6. हमसीढो लोक गीत:-
भील स्त्री तथा पुरूष दोनों द्वारा सम्मिलित रूप से मांगलिक अवसरों पर गाया जाने वाला गीत है।
7.कुरजां लोक गीत:-
यह लोकप्रिय गीत में कुरजां पक्षी को संबोधित करते हुए विरहणियों द्वारा अपने प्रियतम की याद में गाया जाता है, जिसमें नायिका अपने परदेश स्थित पति के लिए कुरजां को सन्देश देने का कहती है।
8. कागा लोक गीत:-
कौवे का घर की छत पर आना मेहमान आने का शगुन माना जाता है। कौवे को संबोधित करके प्रेयसी अपने प्रिय के आने का शगुन मानती है और कौवे को लालच देकर उड़ने की कहती है।
9.कांगसियों लोक गीत:-
यह राजस्थान का एक लोकप्रिय श्रृंगारिक गीत है।
10. मूमल लोक गीत:-
यह जैसलमेर क्षेत्र का लोकप्रिय गीत है, जिसमें लोद्रवा की राजकुमारी मूमल के सौन्दर्य का वर्णन किया गया है। यह एक श्रृंगारिक गीत है।
11. बिनोलो लोक गीत:-
विवाह से पूर्व वर या वधू को अपने सम्बन्धियों द्वारा भोजन के लिए आमंत्रित किया जाता है जिसे बिनोला या बिन्दौरा कहते हैं। इस समय गाये जाने वाले गीतों को बिनोलो कहते हैं।
12. परभातिया लोक गीत:-
विवाह के अवसर पर प्रातःकाल में ब्रह्म मुहूर्त में गाये जाने वाले गीत।
13.पावणा लोक गीत:-
विवाह के पश्चात् दामाद के ससुराल जाने पर भोजन के समय अथवा भोजन के उपरान्त स्त्रियों द्वारा गया जाने वाला गीत है।
14.मोरिया लोक गीत:-
इस लोकगीत में ऐसी लड़की की व्यथा है, जिसका विवाह संबंध (सगाई) निश्चित हो गया है किन्तु विवाह होने में समय बाकि है।
15. औल्यू लोक गीत:-
औल्यू का मतलब ‘याद आना’ है। औल्यू गीत अपने प्रेम की याद में गया जाता है
16. घूमर लोक गीत:-
गणगौर अथवा तीज त्यौहारों के अवसर पर स्त्रियों द्वारा घूमर नृत्य के साथ गाया जाने वाला गीत है, जिसके माध्यम से नायिका अपने प्रियतम से श्रृंगारिक साधनों की मांग करती है।
17. कामण लोक गीत:-
कामण का अर्थ है – जादू-टोना। पति को अन्य स्त्री के जादू-टोने से बचाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में स्त्रियों द्वारा गाया जाने वाला गीत है।
18.पीपली लोक गीत:-
मारवाड़ बीकानेर तथा शेखावटी क्षेत्र में वर्षा ऋतु के समय स्त्रियों द्वारा गया जाने वाला गीत है।
19.फागन/ फागण लोक गीत:-
राजस्थान के फागण अत्यंत लोकप्रिय गीत है जो फागण (होली) के समय गए जाते है
20. पंछीडा गीत लोक गीत:-
हाडौती तथा ढूढाड़ क्षेत्र का लोकप्रिय गीत जो त्यौहारों तथा मेलों के समय गाया जाता है।
21. केसरिया बालम लोक गीत:-
राजस्थान के इस अत्यंत लोकप्रिय गीत में नायिका विरह से युक्त होकर विदेश गए हुए अपने पति की याद करती है तथा देश में आने की अनुनय करती है।
22.हिण्डोल्या लोक गीत:-
राजस्थानी स्त्रियां श्रावण मास में झूला-झूलते हुए यह गीत गाती है।
23. हमसीढो लोक गीत:-
भील स्त्री तथा पुरूष दोनों द्वारा सम्मिलित रूप से मांगलिक अवसरों पर गाया जाने वाला गीत है।
24.सेंजा लोक गीत:-
यह एक विवाह गीत है, जो अच्छे वर की कामना हेतु महिलाओं द्वारा गया जाता है।
25.जच्चा लोक गीत:-
यह राजस्थान का लोकप्रिय गीत को बालक के जन्म के अवसर पर गाया जाने वाला गीत है इसे होलरगीत भी कहते है
26. घडलियो लोक गीत:-
मेवाड़ क्षेत्र में बालिकाओं द्वारा दीपावली के पूर्व नवरात्रि के दिनों से प्रारंभ होकर दीपावली तक गाँव के प्रत्येक द्वार-द्वार जा कर गाये जाने वाले गीतों को घडलियो कहते है। जिस घर के बाहर घडलियो गाया जाता है उस घर वाले इन बालिकाओं को आदि उपहार देते हैं। बालिकाओं में एक बालिका के सिर पर मिट्टी का छेद वाला छोटा घड़ा रखती है जिसमें दीपक जला होता है, इसे ही घडलिया कहते है।*
27.चिरमी लोक गीत:-
चिरमी एक पौधा है जिसके बीज आभूषण तौलने में प्रयुक्त होते थे। चिरमी के पौधे को सम्बोधित कर नायिका द्वारा आल्हादित भाव से ससुराल में आभूषणों व चुनरी का वर्णन करते हुए स्वयं को चिरमी मान कर पिता की लाडली बताती है। इसमें पीहर की याद की भी झलक है।
28. ढोला-मारू लोक गीत:-
यह लोकप्रिय गीत राजस्थान के सिरोही क्षेत्र का लोकप्रिय गीत जो ढोला-मारू के प्रेम-प्रसंग पर आधारित है, तथा इसे ढाढ़ी गाते है।
29. रसिया लोक गीत:-
रसिया होली के अवसर पर ब्रज, भरतपुर व धौलपुर क्षेत्रों के अलावा नाथद्वारा के श्रीनाथजी के मंदिर में गए जाने वाले गीत है जिनमें अधिकतर कृष्ण भक्ति पर आधारित होते हैं।
30. हरजस लोक गीत:-
हरजस का अर्थ है हरि का यश अर्थात हरजस भगवान राम व श्रीकृष्ण की भक्ति में गाए जाने वाले भक्ति गीत है।
31. लावणी लोक गीत:-
लावणी से अभिप्राय बुलावे से है। नायक द्वारा नायिका को बुलाने के सन्दर्भ में लावणी गाई जाती है।
32. इडुणी लोक गीत:-
इडुणी पानी भरने के लिए मटके के नीचे व सर के ऊपर रखे जाने वाली सज्जा युक्त वलयाकार वस्तु को कहते हैं। यह गीत पानी भरने जाते समय स्त्रियों द्वारा गाया जाता है। इसमें इडुणी के खो जाने का जिक्र होता है।
33.बना-बनी लोक गीत:-
राजस्थानी संस्कृति के अनुसार जिस युवक व युवती की शादी होने वाली होती है, उस युवक को बना तथा युवती को बनी कहा जाता है। विवाह के अवसर बना-बनी बनकर जो गीत गाये जाते है, वे ‘बना-बनी’ कहलाते है।
34. धुडला लोक गीत:-
मारवाड़ क्षेत्र का लोकप्रिय गीत है, जो स्त्रियों द्वारा घुड़ला पर्व पर गाया जाता है। गीत है -‘घुड़लो घूमै छै जी घूमै छै।’ यह गाते समय स्त्रियाँ अपने सर पर मिट्टी का छेद वाला छोटा घड़ा रखती है जिसमें दीपक जला होता है।
35. सुवटिया लोक गीत:-
उत्तरी मेवाड़ में भील जाति की स्त्रियां पति -वियोग में तोते (सूए) को संबोधित करते हुए यह गीत गाती है।
36. धमार/ धमाल लोक गीत:-
‘धमाल’ या ‘धमार’ एक गायन शैली है, जिसको होली के दिनों में ही गाने की प्रथा है, चाहे वह लौकिक हो अथवा शास्त्रीय । धमाल के गीतों में नृत्य तत्व होने से लोग इन गीतों की लय के अनुसार नाचते भी हैं । शेंखावाटी क्षेत्र में ‘धमाल’ गाने की परंपरा है
37.लांगुरिया लोक गीत:-
करौली की कैला देवी की आराधना में गाये जाने वाले भक्तिगीत लांगुरिया कहलाते हैं।
38. पीठी लोक गीत:-
‘पीठी’ गीत विवाह के अवसर पर विनायक स्थापना के पश्चात् भावी वर वधू को नियमत: उबटन (पीठी) लगाते समय गाया जाता है – ‘मगेर रा मूँग मँगायो ए म्हाँ री पीठी मगर चढ़ावो ए’।
39. मेहँदी लोक गीत:-
विवाह होने के पूर्ववाली रात को यहाँ ‘मेहँदी की रात’ कहा जाता है। उस समय कन्या एवं वर को मेहँदी लगाई जाती है और मेहँदी गीत गाया जाता है – ‘मँहदी वाई वाई बालड़ा री रेत प्रेम रस मँहदी राजणी।
40. सेवरो लोक गीत:-
विवाह में वर के माथे पर मौर बाँधते समय ‘सेवरो’ गाया जाता है – ‘म्हाँरे रंग बनड़े रा सेवरा’।
41. भात व माहेरा लोक गीत:-
भात भरना राजस्थान की एक महत्वपूर्ण प्रथा है। इसे मायरा कहते हैं। जिस स्त्री के घर पुत्र या पुत्री का विवाह पड़ता है वह घर की अन्य स्त्रियों के साथ परात में गेहूँ और गुड़ लेकर पीहरवालों को निमंत्रण देने जाती है। इसको ‘भात’ कहते हैं। मेवाड़ में इसे बत्तीसी कहते हैं। मूल रूप में भात भाई को दिया जाता है। भाई के अभाव में पीहर के अन्य लोग’माहेरा’ स्वीकार कर वस्त्र तथा धन सहायता के रूप में देते हैं। इस अवसर पर भात गीत की तरह अनेक गीत गाए जाते हैं।
42. राती जगो लोक गीत:-
जब बारात ब्याह के लिए चली जाती है तो वर पक्ष की स्त्रियाँ रात के पिछले पहर में ‘राती जागो’ नामक गीत गाती हैं।
देवी देवताओं के गीतों में ‘माता जी’, ‘बालाजी’ (हनुमान जी),भेरूँ जी, सेड़ल माता, सतीराणी, पितराणी आदि को प्रसन्न करने की भावना छिपी है।
सबके अलग अलग गीत होते हैं। इसके अलावा विशेष अवसर पर देवों को प्रसन्न करने के लिए भी रात भर जागरण करके महिलाओं द्वारा राती जगो के गीत गाये जाते हैं।
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