राजस्थान के मेवाड़ के गहलोत राजवंश पार्ट 3


महाराणा प्रताप का जन्म कुम्भलगढ़ में हुआ था

मेवाड़ की जनता उन्हें कीका के नाम से पुकारती थी

महाराणा प्रताप को समझाने  के लिए अकबर ने 1572 ई में  सबसे पहले जलाल खां  को व बाद में कुंवर  

मानसिंह , तीसरी बार भावान्तदास , चोथी बार टोडरमल को भेजा था

अकबर ने जगमाल को जहाजपुर और आधे सिहोरी का राज्य प्रदान किया था

21 जून 1575 (18 जून)  को कुंवर मानसिंह और महाराणा प्रताप  के बीच हल्दीघाटी का युद्ध हुआ

अकबर ने अजमेर में मानसिंह को मुग़ल सेना का मुख्य सेनापति नियुक्त किया था

प्रताप की सेना के हरावल दस्ते का नेतृत्व हाकिम खां सुर को सोंपा गया था

मानसिंह की सेना के हरावल दस्ते का नेत उनका चाचा जगन्नाथ कछावा कर रहा था

मानसिंह की सेना में प्रसिद इतिहास कार बदायुनी भी शामिल था

मानसिंह का सहायक सेनापति आसफ खां था

मुग़ल सेना के एक अन्य सेनापति महत्तर खां ने भागती हुई मुग़ल सेना को रोका था

कर्नल टॉड ने इस  युद्ध को " मेवाड़ का धर्मोपोली " कहा हाउ  जबकि अबलू फजल ने इसे "खमनौर का युद्ध " और बदायुनी ने "गोगुन्दा का युद्ध " कहा है

महाराणा प्रताप ने अकबर के विरुद्ध "छापामार युद्ध" (गुरिल्ला युद्ध ) जीवन भर किया
1577 में अकबर ने "शाहबाज खां " के नेतृत्व में मुग़ल सेना प्रताप के विरुद्ध भेजी थी जिसने 1578ई  में कुम्भलगढ़ को जीता

प्रताप ने चावण्ड को अपनी राजधानी बनाया था
अक्टूम्बर 1582 में सुल्तान खां और महाराणा प्रताप के बीच "दिवेर का युद्ध " हुआ इस युद्ध में सुल्तान खां अमर सिंह के हाथो मारा गया एव प्रताप की निर्णायक विजय हुई 
 इस युद्ध को मेवाड़ का मेराथन युद्ध कहा जाता है 

अकबर ने महाराणा प्रताप के विरुद्ध अंतिम सेनिक अभियान 1585 जगन्नाथ कछावा के नेतृत्व में भेजा था जो की अपने अभियान में असफल रहा 

प्रताप की मर्त्यु चावण्ड में हुई एव अतिंम संस्कार बडोली में हुआ जहाँ उनका स्मारक है
खुर्रम व अमरसिंह के बीच 1615 में संधि हुई जो मुग़ल मेवाड़ संधि कहलाती है और इस संधि के दुवारा  लम्बे समय से  चला आ रहा मुग़ल मेवाड़ संघर्ष समाप्त हुआ 

महाराणा कर्णसिंह के समय में मुग़ल सम्राट जहंगीर के पुत्र खुर्रम ने 1623 में विद्रोह किया और वह भागकर आया तो कर्णसिंह ने उसे पिछोला झील के महलो में शरण प्रदान की

कर्णसिंह ने जगमंदिर का निर्माण कार्य शुरू करवाया और दिलखुश महल का निर्माण भी करवाया 
जगसिंह ने अपने वंश गौरव के प्रतीक चितोड़गढ़ की मरम्मत का कार्य बिना मुग़ल सम्राट की अनुमति के शुरू किया 

उसने उदयपुर में जगन्नाथ राय का मंदिर बनवाया व जग्मंदिर का कार्य पूर्ण करवाया 
उसने कशी के ब्राह्मणों के लिए दान के तोर पर बड़ी मात्रा में सोना भेजा था 
उसने कल्पव्रक्ष , सप्त सागर , रत्नधेनु , विश्वचक्र आदि बड़े दान देकर ख्याति अर्जित की 
महाराणा  राजसिंह ने ओरंगजेब के विरुद्ध मारवाड़ के भावी शासक अजीतसिंह को दुर्गादास के आग्रह पर सेनिक सहायता प्रदान की और इस तरह एक बार फिर मुग़ल मेवाड़ संघर्ष शुरू हुआ 

महरान राजसिंह के समय शाहजहां ने सादुल्ला खां के नेतृत्व में सेना भेजकर  चितोड़गढ़  की दीवारों के नए निर्माण कार्य को तुडवा दिया 

महाराणा राजसिंह ने किशनगढ़ की राजकुमारी चारुमती (चंचल कुमारी)के साथ विवाह किया था 
उन्होंने अपने राज्य के श्रीनाथ(नाथदुव्रा ) जी का मंदिर बनवाया और उसके खर्च के लिए सिहाड़ गांव भेट किया 

 राजसिंह ने गोमती नदी को रोककर एक झील का निर्माण करवाया जो की उन्होंने के नाम से राजसमन्द झील कहलाती है इस झील की पाल पर 25 शिलाओ पर एक प्रशस्ति लगवाई गई है तथा इन शिलाओं को पल की ताकों में लगवाया ,जिसमे उनकी और अन्य मेवाड़ के शासकों की उपलब्धिया बताई गई है  
इनका लेखक रणछोड़ भट्ट  है 

जयसिंह ने जयसमंद झील का निर्माण करवाया 
अमर सिंह द्वितीय के सहयोग से अजीतसिंह ने मारवाड़ का राज्य और सवाई जयसिंह ने आमेर का राज्य प्राप्त किया 

महाराणा  संग्राम सिंह ने सहेलियों की बाड़ी का निर्माण करवाया था
महाराणा शम्भूसिंह को अंग्रेज सरकार की और से G.C.S.T (Grant Comandes of the star India) उपाधि प्रदान की गई थी 

स्वामी दयानन्द सरस्वती ने परोपकारिणी सभा का गठन उदयपुर  में रहते हुआ किया था उनका अध्यक्ष सज्जन सिंह को बनाया था 

स्वामी दयानन्द सरस्वती ने गो - करुणा निधि नामक पुस्तक लिखी 
सज्जन सिंह के समय में वीर विनोद (मेवाड़ का इतिहास) का रचना की कार्य सम्पादित हुआ 
इसके रचनाकार श्यामलदास थे 

हुरडा सम्मेलन का आयोजन 17-07-1734  हुरडा (भीलवाड़ा ) में हुआ इसकी अध्यक्षता  जगतसिंह ने की 
फतहसिंह मेवाड़ के महाराणा 1884 में बना थे उसके समय में भारत के गवर्नर  जनरल लार्ड कर्जन ने 1903 में दिल्ली दरबार का आयोजन किया था और उस दरबार में शामिल होने के लिए महाराणा फतेह सिंह दिल्ली पहुंचे थे 
परन्तु केसरी सिंह बारहठ के द्वारा लिखे गए पत्र चेतावनी रा चुंगटीया को पढ़ कर दरबार में शामिल नहीं हुवे 

मेवाड़ के अंतिम महाराणा भूपाल सिंह थे 
मेवाड़ राज्य के भारत संघ में विलय के बाद राज प्रमुख फिर बाद में महाराज प्रमुख बने थे 

राजस्थान के मेवाड़ के गहलोत राजवंश पार्ट 1 

राजस्थान के मेवाड़ के गहलोत राजवंश पार्ट 2