सिंधु घाटी सभ्यता और वैदिक काल

Indus Valley Civilization and Vedic Period  

सिंधु घाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसके प्रथम अवशेष हड़प्पा नामक स्थान से प्राप्त हुए थे

पुरातत्व विभाग द्वारा की गई खुदाई में 1921 में हड़प्पा तथा 1922 में मोहनजोदड़ो नामक नगरों का पता चला जो कि वर्तमान में पाकिस्तान में हैं 

रायबहादुर दयाराम साहनी ने हड़प्पा सभ्यता की खोज की तथा मोहनजोदड़ो जिसका सिंधी भाषा में अर्थ मृतकों का टीला होता है कि खोज राखल दास बनर्जी ने की

यह सभ्यता 2500 ई.पू . के आसपास अपनी पूर्ण विकसित अवस्था में प्रकट होती है तथा इसका विस्तार आधुनिक पंजाब सिंध बलूचिस्तान गुजरात राजस्थान तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक था

 नगर तथा भवन:-


सड़के सीधी दिशा में एक दूसरे को संपूर्ण पर काटती हुई नगर को अनेक वर्गाकार चित्र खंडों में विभाजित करती थी

नगर में गलियों की सुंदर व्यवस्था थी प्राय प्रत्येक सड़क वह गली के दोनों और पक्की नालियां बनाई गई थी 
मोहनजोदड़ो में एक विशाल स्नान घर मिला है जो कि 39 फुट लंबा 23 फुट चौड़ा तथा 8 फुट गहरा है ब्रहस्त्स्नागार  का सामान्य जनता के लिए था उसका प्रयोग धार्मिक समारोह के अवसर पर किया जाता था 
नगर के पश्चिम में 1. 52 मीटर ऊंचे चबूतरे पर निर्मित एक भवन मिला है जिसे अनाकार कहा जाता है यह राजकीय भंडारण था जिसमें जनता से कर के रूप में वसूल किया हुआ अनाज रखा जाता था 

समाजिक जीवन:- 

सामान्य व्यवस्था के आधार पर 4 भागों में विभाजित था विद्वान वर्ग योद्धा व्यापारी शिल्पकार और श्रमिक
सिन्धु  निवासी शाकाहारी तमाशा दोनों प्रकार का भोजन करते थे

सिंधु निवासी  का प्रमुख खेल पासा था तथा ये आमोद प्रमोद के प्रेमी थे

आर्थिक जीवन :- 

शिंदे निवासियों के जीवन का मुख्य व्यवसाय कृषि था जहां के प्रमुख खाद्यान गेहूं का जो थे इसके अतिरिक कपास ,चावल एवं फल (तरबूज ,तरबूज )आदि उगाए जाते थे

गाय भैंस बैल बैल बकरी हिरण कुत्ता आदि पशु पाले जाते थे सुरकोटदा नामक स्थान से घोड़े के भी अवशेष मिलते है 

धार्मिक जीवन:-  

यहां पर मातृदेवी पशुपतिनाथ लिंग योनि वृक्षों में पशुओं की पूजा की जाती थी पशुओं में गेंडा बेल चीता हाथी भैंसा कुबड़दार  बैल आदि प्रमुख थे

फाख्ता एक पवित्र पक्षी माना जाता था | वृक्षों में पीपल एक प्रमुख पवित्र व्रक्ष था 


सभ्यता का विनाश :- 

इस सभ्यता के अंत के कारणों के बारे में जिसका इतिहास का एक मत नहीं है प्रत्येक इतिहासकार के विभिन्न मत हैं जिसमें प्रमुख है, बाढ़, आर्यों का आक्रमण , जलवायु परिवर्तन ,भारी जल प्लावन, सिंधु तथा अन्य नदियों का मार्ग परिवर्तन महामारी आर्थिक दुर्बल व्यवस्था सामाजिक ढांचे में बिखराव भूकंप आदि

वैदिक काल (Vedic period)

वैदिक काल सिंधु सभ्यता के विनाश के पश्चात भारत में जिस नवीन सभ्यता का विकास हुआ उसे वैदिक अथवा आर्य सभ्यता के नाम से जाना जाता है कुछ इतिहासकारों का मत है कि आर्य मध्य एशिया से आए और उन्होंने खैबर दर्रे के जरिए( हिंदूकुश पहाड़ में स्थित) भारत में प्रवेश किया वैदिक काल को दो भागों में विभाजित किया जाता है

(क) ऋग्वेदिक काल अथवा पूर्व वैदिक काल (1500 ई. पू. से 1000 ई.पू.)

(ख)उत्तर वैदिक काल (1000 ई.पू. से 600 ई.पू. )

ऋग्वेदिक काल (Rigvedic period ):-

सामाजिक जीवन:-

ऋग्वेदिक काल मे समाज का आधा परिवार था जोकि पितृ सत्तात्मक होते थे, किंतु स्त्रियों की स्थिति समाज में सम्मानीय  थी उन्हें पढ़ने तथा यज्ञ में भाग लेने का पूर्ण अधिकार था
जाति व्यवस्था कर्म पर आधारित थी तथा प्रारंभ में समाज वर्ग रहित सभी व्यक्ति जन के सदस्य समझे जाते थे
 

समाज में स्त्रियों की दशा काफी अच्छी थी उन्हें प्रयाप्त स्वतंत्र थी पर्दा प्रथा का प्रचलन नहीं था तथा उनकी शिक्षा दीक्षा की समुच्चय व्यवस्था थी घोषा लोपा मुद्रा विश्ववारा आदि प्रमुख शिक्षित स्त्रियां थी जिन्होंने मंत्रों की रचना की थी 

आर्थिक जीवन:-  

आर्थिक जीवन के मूलभूत आधार कृषि और पशुपालन था गाय विनिमय का माध्यम होती थी व्यापार तथा वाणिज्य पणि वर्ग के लोग करते थे

धार्मिक जीवन:-

ऋग्वेदिक कॉल में प्रधान देवता प्राकृतिक प्राकृतिक शक्तियों के पत्नी की थी जिनका मणिकरण किया गया था अग्नि सूर्य वरुण इंद्र यम रुद्र अश्वनी आदि प्रमुख देवता थे तथा उषा जी की आरती संध्या आदि प्रमुख देनी थी 
देवताओं की उपासना जी के द्वारा की जाती थी जो की अत्यधिक जटिल  थी इस समय आशना का मुख्य उद्देश्य मोक्ष प्राप्ति ना होकर भौतिक सुख की प्राप्ति था जिसे युद्ध में विजय अच्छी खेती संतान प्राप्ति आदि

उत्तर वैदिक काल(post vedic period ):-

जिस कारण में धनुर्वेद अर्थवेद ब्राह्मण ग्रंथ आरण्यक तथा उपनिषद की रचना हुई थी उस काल को उत्तर वैदिक काल कहा जाता है

सामाजिक जीवन:-

उत्तर वैदिक काल मे समाज चार  चरणों में विभक्त  हो गया था ब्राह्मण, राजन्य या क्षत्रिय ,वैश्य और शूद्र वर्णों में क्रमशः कठोरता आने लगी थी और वे जाति के रूप में परिणत होने लगे थे

उत्तर वैदिक काल मे
अन्तजातीय विवाह होते थे (किंतु सजातीय विवाह का प्रचलन बढ़ने लगा था)

उत्तर वैदिक काल मे एक ही गोत्र के मूल पुरुष वाले लोगों के बीच आपस में विवाह निषिद्ध हो गया था
उत्तर वैदिक काल मे  शिक्षा गुरुकल के माध्यम से दी जाती थी तथा मनुष्य का जीवन चार आश्रमों  में विभाजित माना जाने लगा बह्मचर्य गृहस्थ   वानप्रस्थ तथा सन्यास
 

आर्थिक जीवन :-

कृषि और पशुपालन अब भी आर्थिक जीवन के मुख्य आधार थे लोग खाद के प्रयोग से परिचित थे

धार्मिक जीवन :-

ऋग्वेदिक काल के दो प्रमुख देवता इंद्र तथा अग्नि का महत्व तथा पर सृष्टि के निर्माता प्रजापति को को सर्वोच्च स्थान प्राप्त हो गया था
 
पशुओ के देवता रुद्र उत्तर वैदिक काल में एक महत्वपूर्ण देवता बन गया पूषन जिसे गौ रक्षक समझा जाता था
 

समाज मे ब्राह्मणों का महत्त्व काफी बढ़ गया क्योंकि सिर्फ वे ही धार्मिक अनुष्ठान करा सकते थे जादू टोने में लोगों का विश्वास बाढ़ गया था