भारत की मिट्टियां 

1. काली (रेगुर मिटटी  ):- 

ये भारत की तीसरी प्रमुख मिटटी है | ये दक्कन के पठार के अधिकांश भागो पर पाई जाती है | ये ज्वालामुखी के दरारी विस्फोट से निकले लावा से निर्मित है | इनमें महाराष्ट्र , गुजरात , तमिलनाडु  व  आन्धप्रदेश के कुछ भाग शामिल हैं | काली मिटटी में चुना , लोहा , मैग्नीशियम , एवं  एलुमिना के तत्व अधिक मात्रा में पाए जाते है | इनमे फास्फोरस, नाइट्रोजन , और जेव पदार्थो की कमी होती है | एस मिटटी को रेगुन या कपास मिटटी के नाम से भी जानते है 

2. जलोढ़ मिटटी :- 

 यह मिटटी भारत में सवार्धिक पाई जाने वाली मिटटी है | ये देश की कुल क्षेत्रफल के लगभग 40 प्रतिशत भाग पर विस्तृत है | इसमें पोटाश की मात्रा अधिक और फास्फोरस की कम होती है | सम्पूर्ण उत्तरी मैदान  जलोढ़ मिटटी से बना  है | हिमालय की तीन महत्वपूर्ण नदी तंत्रों सिन्धु , गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा लाए गए निक्षेपों से बनी हैं | पूर्वी तटीय मदन, विशेषकर महानदी, गोदावरी , क्रष्णा और कावेरी नदियों के डेल्टा जलोढ़ मिटटी से बने है | आयु के आधार पर जलोढ़ मिटटी दो प्रकार की है 
पुराना जलोढ़ (बांगर)
नया जलोढ़ (खादर)

3. लेटराइट मिटटी :-

लेटराइट शब्द ग्रीक भाषा के शब्द लेटर से लिया गया है जिसका अर्थ ईट ये मिट्टिया उच्च तापमान और भारी वर्षा के क्षेत्रों में विकसित होती है | वर्षा के साथ चुना और सिलिका टो निक्षलित हो जाते है | तथा होल के आक्साइड और एल्यूमिनियम के योगिक से भरपुर मिट्टिया शेष रह जाती है 
इन मिटियो में जेव पदार्थ , नाइट्रोजन ,  कैल्शियम और फास्फेट की कमी होती है जबकि पोटाश और लोह-आक्साइड की अधिकता होती है | 
लेटराइट  मिटटी पर अधिक मात्रा में खाद और रासायनिक उवर्रक दल के ही खेती की जाती है 
लेटराइट  मिटटी भरी वर्षा से अत्यधिक निक्षालन का परिणाम है | ये मिटटी मुख्य और पर कर्नाटक केरल तमिलनाडू , मध्य प्रदेश और ओड़िशा तथा असोम के पहाड़ी क्षेत्र में पाई जाती है 

4.लाल और पीली मिटटी :-

लाल मिटटी भारत की दूसरी प्रमुख मिटटी है | ये मिटटी अपक्षय के प्रभाव से प्राचीन रवेदार और प्रवर्तित चट्टानों के टूट- फुट के करण निर्मित होती है 
इस मिटटी ला विकास दक्कन के पठार ले पूर्वी तथा दक्षिण भाग में कम वर्षा वाले उन क्षेत्रों में होता है , जहाँ रवेदार आग्नेय चट्टानों पाई जाती है | लाल और पीली मिटटी ओडिशा तथा छत्तीसगढ के कुछ स्थानों और मध्य गंगा के मैदान के दक्षिण भागो पाई जाती है | इनका लाल रंग रवेदार और कायांतरित चट्टानों में लोहे के व्यापक विसरण के कारण है जिब्की जलयोजित  होने के कारण ये पीली दिखाई देती है 

5. पितमय मिट्टिया :-

ये भारी वर्षा और उच्च आर्द्रता से युक्त उन क्षेत्रों में पाई जाती जहाँ वनस्पति की वर्द्धि अच्छी हो इन क्षेत्रो में मीरट 
पदार्थो बड़ी मात्र में इकट्ठे हो जाते है जो मिटटी को हमुम्स और पयार्प्त मात्रा में जेव तत्व प्रदान करते है अत: कार्बनिक पदार्थो के जमा होने के कारण इस मिटटी का निर्माण होता है उसे पिट मिटटी कहते है | इनमें जेव पदार्थो की मात्रा लगभग 45 प्रतिशत  होती है | बिहार ,उत्तराखंड  , पशिचमी बंगाल , ओडिशा और तमिलनाडू में यह मिटटी पाई जाती है 

6.रेतीली, बलुई मिट्टिया :- 

ये मिट्टिया प्राय: संरचना से बलुई और प्रक्रति से लवणीय होती है इनमें नमी और हमुम्स कम होते है | इनमे नाइट्रोजन अपर्याप्त और फास्फेट सामान्य मात्रा में होती है 

7. पर्वतीय मिटटी:-

इस मिटटी का निर्माण पर्वतीय ढालो पर होता है इस मिटटी में जीवाश्म ज्यादा पाए जाते है | पोटाश फस्फोरस व चुने की मात्र कम होती है | इस मिटटी की उर्वरा शक्ति कम है 

8.लवणीय मिट्टिया :- 

इनमे सोडियम , पोटेशियम और मेग्निशिम का अनुपात अधिक होता है | ये अनुपजाऊ  होती है | इनमे किसी भी प्रकार की वनस्पति नही उग सकती