राजस्थान की भील जनजाति
Bhil tribe of Rajasthan
राजस्थान की जनजातियों में भील जनजाति का दूसरा स्थान है
सवार्धिक भील जनजाति उदयपुर मे है
भील शब्द की उत्पत्ति द्रविड़ भाषा के भील शब्द से हुई है जिसका अर्थ होता है- धनुष
वन में रहने के कारण कर्नल टॉड ने भील जनजाति को वनपुत्र कहा
भील जनजाति मेवाड़ी, भीली तथा वागड़ी भाषा का प्रयोग करते हैं
यह राजस्थान के आदिम ( प्राचीन ) जनजाति है |
भीलों जनजाति के कुल देवता टोटम देव है।
राजसमन्द के भीलों की कुल देवी आमजा माता/केलवाड़ा माता (केलवाडा- राजसमन्द ) है।
भील जनजाति के प्रमुख मेले --- घोटिया अम्बा - बांसवाड़ा
बेणेश्वर धाम - डूंगरपुर
धुलेव गाँव - उदयपुर
भीलों के घरों को 'कू ' कहते हैं। इनके घरों को 'टापरा' भी कहा जाता है।
कन्या का जो मूल्य वर पक्ष द्वारा दिया जाता है उसे 'दापा ' कहते हैं।
देवरे में पूजा करने वाले तथा झाड़ फूँक करने वाले को ' भोपा ' कहते हैं।
धार्मिक संस्कारों को संपन्न कराने वाले को ' भगत ' कहते हैं।
भीलों जनजाति में गाँव के मुखिया को 'गमेती ' कहते हैं
भीलों का रणघोष शब्द ''फाइरे-फाइरे'' है।
भील पांडा शब्द से खुश होते हैं एवं कांडी शब्द को गाली मानते है।
भीलों में प्रचलित मृत्यु भोज की प्रथा 'काट्टा' कहलाती हैं।
भीलों का गौत्र 'अटक' कहलाती है।
बहुत से झोपड़े -- पाल
पाल का मुखिया -- पालकी
तंग धोती -- ठेपाड़ा
ठीली धोती -- खोयतू
सिर का साफा -- पोत्या
विवाह का साफा -- लीला मोरीया
वैवाहिक देवी -- भराड़ी
पथ रक्षक देवी -- पथवारी
भील क्षेत्र -- भोमट या मगरा
मृत्यु भोज -- लोकाई या कांधिया
कृषि के प्रकार - चीमाता , दजिया , झूमिंग , वालरा
विशिष्ट प्रथाएं-
1. हाथी वेडो- भीलों में प्रचलित विवाह की प्रथा, जिसके अन्तर्गत बांस, पीपल या सागवान वृक्ष के समक्ष फेरे लिये जाते है। इसमें वर को हरण तथा वधू को लाडी कहते है।
2. भंगोरिया उत्सव- भीलों में प्रचलित उत्सव जिसके दौरान भील अपने जीवनसाथी का चुनाव करते है।
3. भराड़ी- भील जाति में वैवाहिक अवसर पर जिस लोक देवी का भित्ति चित्र बनाया जाता है, की भराड़ी कहते है।
भीलों के विशेष लोकगीत-
1. सुवंटिया - भील स्त्री द्वारा गाया जाने वाला।
2. हमसीढ़ो- भील स्त्री व पुरूष द्वारा युगल रूप में गाया जाने वाला। पहनावा-
नृत्यों के प्रकार- गैर , गंवरी , राई , नेजा , युध्द , ठिचकी , हाथीमना --
प्रमुख पेय पदार्थ -- ताड़ी / महुड़ी , भीलो का सोमरस कहते है और यह महुवा के फूल से बनती है |
भीलो का पवित्र वृक्ष -- महुवा , भीलो का कल्पवृक्ष कहते है |
कांडी ( तीर चलाने वाला ) शब्द -- अपमान सूचक मानते है
पाडा ( शक्ति शाली ) शब्द -- सम्मानसूचक मानते है
भीलो की महिलाओ के अधोवस्त्र को कछाबु या अंगोछा कहते है |
माणिक्य लाल आदिम जाति शोध संस्थान - उदयपुर , भीलो की संस्कृति बचाये रखने का कार्य करती है |
नाता प्रथा , छेड़ा प्रथा , झगड़ा प्रथा , मौताणा व डाकण प्रथा का सवार्धिक प्रचलन भी इसी जनजाति में है |
राजस्थान की जनजातिया भाग 1
सवार्धिक भील जनजाति उदयपुर मे है
भील शब्द की उत्पत्ति द्रविड़ भाषा के भील शब्द से हुई है जिसका अर्थ होता है- धनुष
वन में रहने के कारण कर्नल टॉड ने भील जनजाति को वनपुत्र कहा
भील जनजाति मेवाड़ी, भीली तथा वागड़ी भाषा का प्रयोग करते हैं
यह राजस्थान के आदिम ( प्राचीन ) जनजाति है |
भीलों जनजाति के कुल देवता टोटम देव है।
राजसमन्द के भीलों की कुल देवी आमजा माता/केलवाड़ा माता (केलवाडा- राजसमन्द ) है।
भील जनजाति के प्रमुख मेले --- घोटिया अम्बा - बांसवाड़ा
बेणेश्वर धाम - डूंगरपुर
धुलेव गाँव - उदयपुर
भीलों के घरों को 'कू ' कहते हैं। इनके घरों को 'टापरा' भी कहा जाता है।
कन्या का जो मूल्य वर पक्ष द्वारा दिया जाता है उसे 'दापा ' कहते हैं।
देवरे में पूजा करने वाले तथा झाड़ फूँक करने वाले को ' भोपा ' कहते हैं।
धार्मिक संस्कारों को संपन्न कराने वाले को ' भगत ' कहते हैं।
भीलों जनजाति में गाँव के मुखिया को 'गमेती ' कहते हैं
भीलों का रणघोष शब्द ''फाइरे-फाइरे'' है।
भील पांडा शब्द से खुश होते हैं एवं कांडी शब्द को गाली मानते है।
भीलों में प्रचलित मृत्यु भोज की प्रथा 'काट्टा' कहलाती हैं।
भीलों का गौत्र 'अटक' कहलाती है।
बहुत से झोपड़े -- पाल
पाल का मुखिया -- पालकी
तंग धोती -- ठेपाड़ा
ठीली धोती -- खोयतू
सिर का साफा -- पोत्या
विवाह का साफा -- लीला मोरीया
वैवाहिक देवी -- भराड़ी
पथ रक्षक देवी -- पथवारी
भील क्षेत्र -- भोमट या मगरा
मृत्यु भोज -- लोकाई या कांधिया
कृषि के प्रकार - चीमाता , दजिया , झूमिंग , वालरा
विशिष्ट प्रथाएं-
1. हाथी वेडो- भीलों में प्रचलित विवाह की प्रथा, जिसके अन्तर्गत बांस, पीपल या सागवान वृक्ष के समक्ष फेरे लिये जाते है। इसमें वर को हरण तथा वधू को लाडी कहते है।
2. भंगोरिया उत्सव- भीलों में प्रचलित उत्सव जिसके दौरान भील अपने जीवनसाथी का चुनाव करते है।
3. भराड़ी- भील जाति में वैवाहिक अवसर पर जिस लोक देवी का भित्ति चित्र बनाया जाता है, की भराड़ी कहते है।
भीलों के विशेष लोकगीत-
1. सुवंटिया - भील स्त्री द्वारा गाया जाने वाला।
2. हमसीढ़ो- भील स्त्री व पुरूष द्वारा युगल रूप में गाया जाने वाला। पहनावा-
नृत्यों के प्रकार- गैर , गंवरी , राई , नेजा , युध्द , ठिचकी , हाथीमना --
प्रमुख पेय पदार्थ -- ताड़ी / महुड़ी , भीलो का सोमरस कहते है और यह महुवा के फूल से बनती है |
भीलो का पवित्र वृक्ष -- महुवा , भीलो का कल्पवृक्ष कहते है |
कांडी ( तीर चलाने वाला ) शब्द -- अपमान सूचक मानते है
पाडा ( शक्ति शाली ) शब्द -- सम्मानसूचक मानते है
भीलो की महिलाओ के अधोवस्त्र को कछाबु या अंगोछा कहते है |
माणिक्य लाल आदिम जाति शोध संस्थान - उदयपुर , भीलो की संस्कृति बचाये रखने का कार्य करती है |
नाता प्रथा , छेड़ा प्रथा , झगड़ा प्रथा , मौताणा व डाकण प्रथा का सवार्धिक प्रचलन भी इसी जनजाति में है |
राजस्थान की जनजातिया भाग 1
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