आमेर का कच्छावा राजवंश पार्ट 1

आमेर का कच्छावा राजवंश अपने आपको रामचंद्र जी के पुत्र कुश का वंशज  मानते है

सोढदेव के पुत्र दुल्हेराय ने 1137  ई. में बडगुर्जरो को पराजित करके दौसा  पर अधिकार कर लिया
ढूढाड के कच्छावा राज्य का संस्थापक दुल्हराय को माना जाता है

काकिलदेव ने मीणा को पराजित कर के रख आमेर पर अधिकार किया और उसे अपने राज्य की राजधानी बनाया

इसी वंश में आगे चलकर भारमल बिहारी मल 1548 में आमेर का शासक बना

भारमल ने 1562ई में सांगानेर में  अकबर से भेंट कर अधीनता स्वीकार की

भारमल ने अपनी  पुत्री मानमती का विवाह अकबर के साथ किया

अकबर ने भारमल को अमीर उल उमरा और राजा की उपाधियां प्रदान की भारमल की मृत्यु के बाद उसका पुत्र भगवानदास 1574 में आमेर का शासक बना

भगवान दास ने अपनी पुत्री मानबाई का विवाह शहजादा सलीम के साथ किया था जिनका खुसरो नामक पुत्र था

भगवान दास के समझाने पर ही सूजन हाडा रणथंभौर का दुर्ग अकबर को सौंपा था और उसकी अधीनता स्वीकार की अकबर ने भगवान दास के नेतृत्व में महाराणा प्रताप को समझाने के लिए तीसरी बार शिष्टमंडल भेजा था भगवान दास की मृत्यु के बाद उसका उत्तराधिकारी मानसिंह प्रथम बना

कुँवर मानसिंह को महाराणा प्रताप को समझाने के लिए अकबर ने 1573 में मेवाड़ भेजा था

कुँवर मानसिंह ने महाराणा प्रताप के विरुद्ध हल्दीघाटी के युद्ध मुगल सेना का नेतृत्व किया

राजा मानसिंह ने बंगाल बिहार ,उड़ीसा, काबुल ,कंधार को जीतकर मुगल साम्राज्य में मिलाने में अहम योगदान दिया था


मानसिंह ने शीला देवी की मूर्ति को आमेर लाकर आमेर में इस का मंदिर बनवाया
 

शीला देवी आमेर के शासकों की आराध्य देवी है
 

मान सिंह ने अपने पुत्र जगत सिंह की स्मृति में आमेर में जगत शिरोमणि का मंदिर बनवाया था
मानसिंह ने आमेर में महलों का निर्माण करवाया था


मान सिंह ने अटक (वर्तमान पाकिस्तान) किले का निर्माण करवाया था
 

मानसिंह के समकालीन राजस्थान के प्रसिद्ध संत दादूदयाल थे जिन्होंने अपना अधिकांश जीवन आमेर 
में व्यतीत किया था
 

मिर्जा राजा जयसिंह के पिता का नाम मानसिंह था
 

मिर्जा राजा जयसिंह जहांगीर, शाहजहां ,औरंगजेब के समय में मुगल सेना में मनसबदार के पद पर थे
 

मिर्जा राजा जयसिंह ने शाहजहां के पुत्रों के मध्य हुए अधिकारी संघर्ष में दर्शकों की तरफ से शुजा के विरुद्ध भाग लिया था

मिर्जा राजा जयसिंह और शिवाजी के बीच 1665 ई . में पोरबंदर की संधि हुई थी जिसके तहत शिवाजी ने औरंगजेब के अधीनता स्वीकार करते हुए आगरा आए थे यहां पर उन्हें बंदी बना लिया गया था


मिर्जा राजा जयसिंह के दरबारी कवि बिहारी मल थे जिन्होंने सतसई की रचना की थी

मिर्जा राजा जयसिंह बिहारी मल को प्रत्येक एक नए दोहे की रचना पर एक स्वर्ण मुद्रा प्रदान करते थे

जय सिंह ने जय गढ़ और आमेर के महलों का निर्माण करवाया था उसने औरंगाबाद के निकट जयसिंहपुरा नामक नगर बसाया था 

सवाई जयसिंह 1701 में औरंगजेब के साथ दक्षिण भारत में मराठों के बीच पहुंचा और मराठों के विरुद्ध खेलना के युद्ध में अद्भुत वीरता का परिचय दिया और मुगलों में मराठों के बीच संधि वार्ता में मध्यस्थता भी की
 8 जून 1707 को आगरा के निकट मुअज्जम व आजम के बीच युद्ध हुआ इस युद्ध में सवाई जयसिंह ने आजम की तरफ से भाग लिया

बहादुर शाह ने आमेर के राज्य को खालसा घोषित कर दिया और आमेर का नाम बदलकर मोमिनाबाद( इस्लामाबाद) रखा था 


सवाई जयसिंह ने नाहरगढ़ बनाया था मेवाड़ महाराणा अमर सिंह द्वितीय से सहायता प्राप्त करने के लिए सवाई जयसिंह और मारवाड़ के शासक अजीत सिंह (जसवंत सिंह का पुत्र) उदयपुर पहुंचे और उनकी सहायता से राज्य प्राप्त किया था


सवाई जय सिंह की पत्नी चंद कंवर (अमर सिंह की पुत्री )थी


सवाई जयसिंह ने बदन सिंह के सहयोग से जाटों का विद्रोह का दमन किया था सवाई जयसिंह की इस सहायता पर मोहम्मद शाह ने उसे राजेश्वर राजाधिराज सवाई की उपाधि प्रदान की थी


सवाई जयसिंह ने बदन सिंह को राजा की पदवी दिलवाई और उसे जाटों का नेता स्वीकार किया गया 


सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 को राजपूत शासकों ने हुड्डा में सम्मेलन हुआ अध्यक्षता मेवाड़ महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की थी


सवाई जयसिंह ने विद्याधर भट्टाचार्य (बंगाल) से जयपुर का नक्शा बनवाया और उसी के आधार पर 1727 में जयपुर की स्थापना की जयपुर के चारों तरफ परकोटा बनवाया गया जिसमें 7 प्रवेश द्वार है



सवाई जयसिंह के दरबार में अनेक ज्योतिषी  रहा करते थे और वह स्वयं भी खगोल विद्या और ज्योतिष में रुचि रखता था उसने अपने समय तक का शुद्ध ग्रह गणित तैयार करना शुरु किया इसके लिए उसने सबसे पहले दिल्ली में वेधशाला बनवाई उसके बाद उसने जयपुर में (सबसे बड़ी) उज्जैन वाराणसी और मथुरा में भी वेधशालाएं बनवाई
 

सवाई जयसिंह ने केवलराम को ज्योतिष राय की उपाधि से सम्मानित किया
 

सवाई जयसिंह के समय का सर्वाधिक प्रसिद्ध विद्वान पुंडरीक रत्नाकर था जिस ने जयसिंह कल्पद्रुम नामक ग्रंथ की रचना की थी
 

सवाई जयसिंह ने अश्वमेध यज्ञ किया था सवाई जयसिंह अंतिम हिंदू नरेश था जिसने भारतीय परंपरा के अनुसार अश्वमेघ यज्ञ किया था
 सवाई जयसिंह ने वाजपेय,राजसूय ओर सर्वमेघ ,पुरुष मेघ आदि यज्ञ किये थे
 

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