मारवाड़ के राठौर राजवंश - मारवाड़ (जोधपुर)
मारवाड़ के राठौर का मूल पुरुष सीहा नामक व्यक्ति था जिसका एक शिलालेख (1273 ई ) पाली जिले के बिठू नामक गांव में प्राप्त हुआ है इस शिलालेख पर सीहा की अश्वाराहो मूर्ति भी बनी हुई है व पाली प्रदेश की मुसलमानों, से रक्षा करते हुआ वीर गति को प्राप्त हुआ था सीहा बदायु के राठौर का या राष्ट्कूटो की शाखा से सम्बन्धित कोई व्यक्ति था
मुह्णोत नेणसी ने अपनी ख्यात में मारवाड़ के राठौरों को कन्नोज से आने वाली शाखा बताया है
पृथ्वीराज रासो में मारवाड़ के राठोरो को कन्नोजिया गढ़वाल के रूप में उल्लेखित किया गया है
दयालदास और कर्नल टॉड ने भी उन्हें कन्नोज से सम्बन्धित बताया है
सीहा का उतराधिकारी उसका पुत्र आसथान था जिसने मुन्दोच नामक गांव में अपनी शक्ति का संगठन किया था और धीरे - धीरे अपने राज्य का विस्तार करते ईडर के भीलों को पराजित करके उस क्षेत्र पर अपना अधिकर किया था 1291 में जलालुदीन खिलजी की सेना के साथ लड़ने हुये वीरगति को प्राप्त हुआ था
इस वंश का पहला बड़ा प्रतापी शासक राव चुंडा हुआ था
राव चुंडा ने 1936 में गुजरात के शासक जफ़र खां व्दारा मंडोर पर किये गये आक्रमण को विफल किया और डीडवाना , संभार , अजमेर , नाडोल आदि प्रद्शो पर अधिकार करके एक बड़ा राज्य स्थापित के लिया था
राव चुंडा 1423 ई में शुत्रुओ के साथ लड़ते हुये मारा गया था
चुंडा ने अपने ज्येष्ट पुत्र रणमल को उतराधिकारी न बनाकर कान्हा को अपना उतराधिकारी बनाया था
मोकल के बड़े भाई चुंडा ने कुम्भा के समय रणमल की प्रेमिका भारमाली के सहयोग से 1438 में रणमल की हत्या करवा दी
जोधा ने कहुनी गांव में रहकर अपनी शक्ति का संगठन किया था और 1453 में मंडोर पर अधिकार कर लिया
जोधा ने 1459 में अपने राज्य की राजधानी के तोर पर जोधपुर की स्थापना की और चिड़िया टुंक पहाड़ी पर एक दुर्ग का निर्माण करवाया जो की गढ़ चिंतामणि मयूर घ्वजगढ़ और मेहरानगढ़ के नाम से जाना जाता है
राव सातल ने अपने नाम से सातलमेर नामक एक नगर बसाया था
13 मार्च 1492 को अजमेर को मुस्लिम सूबेदार मल्लू खां और राव सातल के बीच पीपाड़ नामक स्थान पर युद्ध हुआ
जिसमे मल्लू - खां को पराजित होकर भागना पड़ा और उसी रात्रि को घायल होने की वजह से राव सातल की मुत्यु हो गई
मुगल सम्राट अकबर ने चंद्रसेन की मुत्यु के 3 वर्ष बाद (1582 ) उसके बड़े भाई उदयसिंह को मारवाड़ का राज्य प्रदान किया था
उसने सिरोही के शासक राव सुरताण देवडा (चोहान ) के विरुद्ध 1588 और 1593 में भाग लिया था और सुरताण देवड़ा को आधीनता स्वीकार करवाने में सफलता प्राप्त की
उदयसिंह ने अपनी पुत्री का विवाह (जोधाबाई का ) मुग़ल सम्राट के पुत्र सलीम के साथ किया था जो की जोधपुर की राजकुमारी होने की वजह से उसे जोधाबाई के नाम से जानी जाती थी और जगत गुसाई के नाम से प्रसिद्ध रही
सुरसिंह का लाहोर में उदयसिंह की मुर्त्यु के बाद टिका देनी की रस्म का कार्य पूर्ण किया (शासक बनाया ) और उसे 2000 का मनसब प्रदान किया था
सुरसिंह ने जोधपुर में सूरसागर नामक बड़े तालाब का निर्माण करवाया और वह पर उधान लगवाया
गजसिंह ने अपने सबसे बड़े पुत्र अमरसिंह को अपना उतराधिकारी ने बनाकर अपने छोटे पुत्र जसवंत सिंह को उतराधिकारी घोषित किया था
अमरसिंह के समय में बीकानेर के शासक कर्णसिंह के साथ 1644 में एक युद्ध हुआ जो की ' मतीरें की राड ' के नाम से प्रसिद्ध है
अमर सिंह ने शाहजहाँ के दरबार में सलावत खां का वध कर दिया था
अमर सिंह राठौर अपने साहस और वीरता के लिए प्रसिद्ध रहा है और आज भी इसी के नाम के ख्याल राजस्थान के गावो में गाये व खेल जाते है
जसवंत सिंह और ओरंगजेब के बीच उज्जेन के निकट 16 अप्रेल 1653 का घरमत का युद्ध हुआ जिसमे ओरंगजेब की विजय हुई इस युद्ध में कासिम खां ने जसवंत सिंह के साथ विश्वासघात किया था
घरमत युद्ध की विजय से उपलक्ष्य में ओरंगजेब में धरमत का नाम बदल कर फतेहबाद किया था
ओरंगजेब और शुजा के बीच 5 जनवरी 1659 को खजुआ का युद्ध वाराणसी के निकट हुआ था जिसमे शुजा पराजित होकर बंगाल की तरफ भाग गया था
जसवंत सिंह ने दारा शिकोह को सेनिक सहायता देने का आश्वासन दिया परन्तु बाद में उन्होंने दारा शिकोह को मिर्जा राजा के समझाने पर सहायता नही दी और 12 मार्च 1659 को अजमेर के निकट दारा शिकोह और ओरंगजेब के बीच दोराई का युद्ध हुआ जिसमे दारा शिकोह पराजित होकर सिंध की तरफ भाग गया
1678 में काबुल के निकट जमरूद नामक स्थान पर जसवंतसिंह की म्रत्यु हुई थी
जसवंत सिंह ने कई विद्वानों को अपने राज्य में आशय प्रदान किया था उन्होंने भाषा भूषण नामक ग्रन्थ की रचना की थी मुह्णोत नेणसी जिसे की राजस्थान का अबुलफजल कहा जाता है जसवंत सिंह का मंत्रि था उन्होंने मुह्णोत नेणसी री ख्यात और मारवाड़ रा परगना री विगत नामक दो ग्रन्थ लिखे थे
मुहनोत नेणसी और उसके भाई सुन्दरदास ने आत्महत्या कर ली थी
जसवंत सिंह ने ओरंगाबाद के निकट जसवंतपुरा नामक एक नगर बसाया था
शाहजहाँ ने जसवंत सिंह को महाराजा की उपाधि प्रदान की थी
दुर्गादास राठौर के पिता का नाम आसकरण था जो की महाराजा जसवंत सिंह के मत्री थे
दुर्गादास राठौर का जन्म मारवाड़ के सलवा में गांव में हुआ था
अजीतसिंह पर दलथम्मन का जन्म लाहोर के नकट हुआ था
ओरंगजेब ने जोधपुर को खालसा घोषित कर दिया था
ओरंगजेब ने अमरसिंह राठौर के पोत्र इन्द्रसिंह को कुछ समय के लिए मारवाड़ का राज्य दिया था
ओरंगजेब ने अजित सिंह (नकली अजित सिंह ) का नाम मुहम्म्दिराज रखा था
दुर्गादास ने कालिंदी गांव के ब्राह्मण जयदेव के यहाँ अजीत सिंह को छुपकर रखा था और उसकी सुरक्षा के लिए मुकुंद दास खिंची को नियुक्त किया था
मेवाड़ महाराणा राजसिंह ने अजीत सिंह को संरक्षण और सेनिक सहायता दी थी
ओरंगजेब के पुत्र अकबर को 1 जनवरी 1681 में नाडोल में मुग़ल सम्राट (दुर्गादास द्वारा ) घोषित किया गया था
दुर्गादास अकबर को शम्भा जी के पास दक्षिण भारत ले गया था
दुर्गादास ने अकबर ओरंगजेब के पोत्र बुलंद अख्तर और पोत्री सफी यतुन्निसा की इस्लामी शिक्षा का प्रबंध किया था
मेवाड़ महाराणा के दुर्गादास को सादड़ी गांव जागीर के रूप में दिया था
1708 में अजीतसिंह ने अमरसिंह के सहयोग से जोधपुर राज्य फिर से प्राप्त किया था
ओरंगजेब ने मेड़ता दुर्गादास को जागीर के रूप में प्रदान किया था
दुर्गादास की म्रत्यु उज्जेन में हुई थी और क्षिप्रा नदी के तट पर दुर्गादास का अंतिम संस्कार हुआ
अजीत सिंह के बड़े पुत्र अभय सिंह के कहने पर उसके छोटे भाई बख्त सिंह ने 1724 में अजीत सिंह की हत्या कर दी
अजीत सिंह ने कई ग्रंथो की रचना की थी जिसमे गुण सागर , दुर्गापाठ भाषा, निर्वाण दुहा प्रमुख है
अजीत सिंह ने मेहरानगढ़ में फतहमहल का निर्माण करवाया
1803 में भीमसिंह की म्रत्यु के बाद मानसिंह शासक बना
आयस देवनाथ ने मानसिंह को राज्य प्राप्ति की भविष्यवाणी की थी इसलिए मानसिंह ने बाद में महामंदिर का निर्माण करवाया जो की नाथ सम्प्रदाय(जोधपुर ) का राजस्थान में मुख्य केन्द्र है
1807 में मानसिंह और जयपुर के शासक जगतसिंह के बीच गिगोंली का युद्ध (परबतसर) हुआ
जोधपुर के अंतिम शासक हनुवंत सिंह पोलो खिलाडी थे
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