जालोर के सोनगरा चौहान


जालोर के सोनगरा चौहान शाखा का संस्थापक नाडोल के शासक अल्हण का पुत्र कीर्तिपाल

 (कितू ) जिसने 1182 में जालौर पर अधिकार किया था


जालौर का प्राचीन नाम शिलालेखों में और अन्य साहित्यिक ग्रंथों में जबालीपुर उल्लेखित मिलता है

कान्हड़दे, सामंत सिंह की मृत्यु के बाद जालौर का शासक बना जोकि जालौर के शासकों में सबसे अधिक प्रतापी शासक था

कान्हड़ दे के बारे में हमें जानकारी पदनाम द्वारा लिखित कान्हड़ दे प्रबंध में मिलती है, तथा
फरिश्ता द्वारा लिखित तारीख ए फरिश्ता , और अमीर खुसरो द्वारा लिखित खुदाइन- उल- फुतुह मुहणोत नेणसी द्वारा लिखित मुहणोत नैणसी विख्यात और मकराना के शिलालेख से प्राप्त होती हैं
अलाउद्दीन खिलजी की पुत्री फिरोजा जो कि विरमदेव  (कान्हड़देव का पुत्र) से प्रेम करती थी

कान्हड़देव के सेनापति जेता देवड़ा ने गुजरात से लौटते हुए अलाउद्दीन खिलजी की सेना को लूटा था

कान्हड़देव ने सोमनाथ के मंदिर( गुजरात) की मूर्ति के पांच टुकड़ों को पांच मंदिरों में स्थापित करवाया था

अलाउद्दीन खिलजी ने कमालुद्दीन गुर्गे के नेतृत्व में 1308 में सिवाना को जीतने के लिए वर्तमान बाड़मेर में सेना भेजी थी

सिवाना में घेरे  के दौरान कमालुद्दीन का सहायक सेनापति नाहर  खां मारा गया था

सातल देव लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ है उसकी पत्नी ने सभी राजपूत स्त्रियों के साथ जौहर किया था भावले सातल देव के साथ विश्वासघात किया था

अलाउद्दीन खिलजी ने सिवाना का नाम बदलकर खैराबाद खा था

कमालुद्दीन गुर्गे ने सिवाना को जीतने के बाद जालौर दुर्ग को जीतने के लिए 7 दिन तक प्रयास किए किंतु असफल रहा

कान्हड़देव की सेना ओर अलाउद्दीन खिलजी की सेना के बीच मालकाना का युद्ध (मेड़ता) 1308 में हुआ जिसमें अलाउद्दीन की सेना पराजित हुई

अलाउद्दीन खिलजी ने 1311 में जालौर को जीतने के लिए कमालुद्दीन गुर्गे के नेतृत्व में सेना भेजी थी

बीका देहिया  ने  कान्हड़देव के साथ विश्वासघात किया था

अलाउद्दीन खिलजी ने जालौर विजय के उपलक्ष में जालौर दुर्ग में एक मस्जिद का निर्माण करवाया

जालौर किला स्वर्णगिरि पहाडी पर है


चौहान राजवंश ( सपादलक्ष या शाकंभरी के चौहान)

रणथंभोर के चौहान